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15-Sep-2019
सूचना आपको सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 क्षमावाणी पर्व दिनांक 15 सितम्बर 2019 दिन रविवार समय प्रातः 9 :30 बजे से आचार्य श्री 108 विशद सागर जी महाराज ससंग के सानिध्य में सामुदायिक केंद्र निकट जैन मंदिर हरिद्वार BHEL में मनाया जा रहा है जिसमे आप सभी सपरिवार समिल्लित होकर कार्यक्रम की सोभा बढ़ाये. कार्यक्रम के पश्चयात भोजन की व्यवस्था सामुदायिक केंद्र में है आयोजक - साधु सेवा समिति ( पंचपुरी ) हरिद्वार
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मंदिर का इतिहास

1. 17.07.1968 - श्री मनोहर लाल जैन, चाीफ प्लांट इंजीनियर, बी.एच.एल. के यहां बैठक जैन परिषद का गठन हुआ जिसमें वाराणसी से प्रो0 खुशहाल चन्द जैन गोरेवाला भी उपस्थित थे। 

2. 17 से 19.05.1969 तक- मुनि श्री 108पअंटंदंदक जी महाराज का ज्वालापुर-कनखल में पदापर्ण। 18.05.1969 को भेल जैन समाज ने मुनि श्री का आहार बी.एच.ई.एल., सेक्टर-1 में कराया। महाराज श्री नेभेल कालोनी में जैन मन्दिर बनाने को प्रोत्साहित किया। 

3. 1969 से 1974 तक- भेल कालोनी के जैन परिवार दशलक्षिणी, निवा्रण उत्सव व महावीर जयन्ती के अवसर पर बी.एच.ई.एल. की बस द्वारा ज्वालापुर व कनखल जैन मन्दिरों में जाया करते थे। 

4. 1970 - बी.एच.ई.एल. प्रबन्धिका को जैन मन्दिर बनाने के लिये भूमि आवांटन के लिये प्रार्थना पत्र दिया। 

5. 11.12.1970 - बी.एच.ई.एल. प्रबन्धिका ने परिषद को रजिस्ट्रार फर्मस व सोसाइटिज में रजिस्टर करवाने के लिये लिखा। 

6. 28.09.1974 - श्री व फं - मानजैन परिषद, बी.एच.ई.एल. का रजिस्ट्रार फर्मस व सोसाइटिज द्वारा रजिस्ट्रेशन संख्यां 1443 प्राप्त हुआ। 

7. पंचपुरी में नवम्बर 1974 से नवम्बर 1975 तक- राष्ट्रीय स्तर पर तीर्थकर महावीर भगवान का 2500 वां निर्वाण वर्ष मनाया गया। श्री व फं-मानजैन परिषद ने महावीर जयन्ती के अवसर पर जैन मन्दिर हरिद्वार में दिनांक 08.04.1975 को झांकी निकाली। 

8. दिसम्बर 1974 - बी.एच.ई.एल. प्रबन्धिका ने गोगा बाबा मन्दिर के समीप जैन मन्दिर के लिये भूमि आवंटित की। ये जगह गड्ढे में, बरसाती नाले के बगल में व मिट्टी के टीले के सामने और कालोनी से दो-ढाई किलोमीटर दूर था। अतः श्री व फं- मानजैन परिषद ने लेने से अस्वीकार कर दिया।

9. जनवीर 1975 - श्री फं व जैनमान परिषद ने दूसरी जमीन देने के लिये कई बार पत्राचार किया। 

10. 20.03.1978 - जैन मन्दिर बनाने के लिये सेक्टर-4 में नई जगह दिखायी गयी, जिसे स्वीकार कर लिया गया (मिनिस्ट्री आफ हैवी इन्ड्रस्ट्रीस, दिल्ली ने इसकी स्वीकारोक्ति बहुत अधिक पत्राचार के बाद 17.09.1981 को दी)।

11. दिसम्बर 1978 से मार्च 1979 तक - प्रांगण में दो कमरे बन कर तैयार हो चुके थे। 

12. मार्च 1979 - में - जम्बू द्वीप, हस्तिनापुर में पचं कल्याण में एक श्रेष्ठी ने भगवान श्री महावीर जी का संगमरमर की साढे तीन फोट अवगाहना की सिद्धासन प्रतिमा को बी.एच.ई.एल. जैन मन्दिर के लिये प्रतिष्ठित करवा कर दी।

13. 20.10.1979 - हस्तिनापुर से प्रतिमा जी लाकर एक कमरे में विराजमान कर दी व चैत्यालय में प्रतिदिन विधिवत पूजा-अर्चना होने लगी। साथ में धातु की छोटी प्रतिमा चन्दा प्रभु भगवान की भी थी। 

14. 1978 से 1980 तक- बी.एच.ई.एल. के आर्कीटेक्ट श्री वी. के. गुप्ता श्री दिनेश चन्दा, मंत्री, श्री व फं-मानजैन परिषद के साथ मोदीनगर, सहारनपुर, मेरठ दिल्ली आदि के जैन मन्दिरों में जा कर उनकी बनावट व आर्किटेक्चर समझते रहे।

15. अक्टुबर 1979 - श्री दिनेशचन्द्रा ने प्रोफेसर डाक्टर ओ.पी. जैन हैड सिविल इंजीनियरिंग विभाग, से गर्भ में प्रतिमा के दर्शन होने चाहिये। जिससे उसके वृहद रूप का भान हो। 

16. नवम्बर 1979 - श्री दिनेशचन्द्राने बी.एच.ई.एल. के डी0जी0म0 (प्रोजेक्ट सिविल) श्री पी.सी. राव को बिना खम्बों के 50ग50 फीट का हाल व वहां से गर्भ गृह का खुला ़शलं दिखने वाले जैन मन्दिर का डिजाइन करने के लिये प्रोत्साहित किया। जिसे श्री पी.सी. ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

17. सितम्बर 1980 - चैत्यालय में दशलाक्षिणी के अवसर पर सहारनपुर के प0 देवी प्रसाद जैन शास्त्री को बुलाकर प्रवचन का धर्म लार्भ लिया। 

18. जून 1982 - श्री पी.सी. राव ने भव्य मन्दिर के शिखर/गर्भ गृह व आठ पहल वाले बिना खम्बों के हाल का नक्शा, जो कि आर.सी.सी. बेस डिजाइन के अनुसार था बना कर दे दिया। सारा काम निःशुल्क किया गया।

19. अक्टूबर 1982 - मन्दिर के नक्शे की वर्किंग ड्राईंग बन कर तैयार हो गई (ये भी निःशुल्क थी)। 

20. एक आर्किटेक के द्वारा माप के अनुसार मन्दिर का माडल गत्ते का लगभग 18 इंच ऊंचाई का निःशुल्क बनाया गया जिसे लेकर दान लेने के लिये लोगों से मिलने जतो थे।

21. आसपास के नगरों में, सद्स्यों के रिश्तेदारों व जान पहचान वालो से मन्दिर बनवाने के लिये दान दाताओं को कहने, पत्र लिखने, मिलने की प्रक्रिया शुरू की गई। उस समय श्री व फं-मानजैन परिषद के 127 सदस्य थे। मन्दिर का एस्टिमेट लगभग रू0 15 लाख था।

22. नवम्बर 1982- एक सिविल कसंट्रक्शन कंपनी जो मन्दिर बनाने का काम भी करती थी से इस काम का अनुबंध किया गया। 

23. 19.01.1983- गर्भ गृह के चार खम्बों को चिहिन्त करके खुदाई प्रारम्भ की गई। 

24. 25.01.1983 - मेरठ के दानवीर सेठ श्री शिखर चन्द जी जैनने भूमि पूजन किया और शिखर का निर्माण प्रारम्भ हुआ। 

25. 08.01.1984- शिखर व गर्भ गृह का निर्माण पूरा हुआ साथ में हाल के खम्बे भी खड़े होने लगे थे।

26. अप्रेल - मई - जून - 1984 - आठ पहल वाले हाल का डिजाइन बहुत अनूठा होने के कारण व साथ-साथ आर.सी.सी. बेस कसंट्रक्शन के हिसाब से एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इसमें श्री दिनेश चन्द्राव श्री चन्द्र जैन, मैनेजर सिविल का क्वालिटी कंट्रोल पर विशेष सहयोग रहा। छत की कांक्रीटिगं 72 घटें चली जिसमें 6 मिकस्चर लगतार चले। इस दौरान मंदिर जी में सदस्य श्री राजेन्द्र कुमार जैन, डिप्टी मैनेजर, वैल्डिंग टैक्नालोजी, भेल व श्री हिमांशु जैन की दिन-रात की उपस्थिति विशेष थी।

27. अपे्रल -मई 1985- हाल व शिखर का कांक्रीट का काम पूरा हुआ। 

28. अक्टूबर 1987 - मन्दिर जी में अन्दर का काम लगभग पूरा हुआ एवं निर्णय लिया गया कि दिनांक 16.01.1988 से 23.01.1988 तक श्री आदिनाथ जिनबिम्ब पंच कल्याण्क कराये जायें। 

29. 20.12.1.87 श्री गुरनाम शरण, ई.डी. व श्री ए.डी. पाराशर, जी.एम.,हीप, हरिद्वार द्वारा पंच कल्याणक पत्रिका का विमोचन किया गया। 

30. जनवरी 1988- पांडुक शिला और मन्दिर जी का काम पूरा हुआ। 

31. 16 से 23.01.1988 1 मन्दिर जी में भगवान श्री आदिनाथ की धातु की प्रतिमा की प्रतिष्ठा पंच कल्याणक में कराई गयी व चैताल्य से प्रतिमाओं का गर्भ गृह में स्थानान्तरण-भव्य पंचकल्याण्क महोत्सव के अंतिम दिन दिनांक 23.01.1988 को हुआ। 

32. पंच कल्याण्क के मुक्ष्य विवरण इस प्रकार हैः- सम्पूर्ण कार्य टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर के तत्वाधान में हुआ। 
3पण् पंच कल्याण्क के प्रतिष्ठाचार्य - प0 ज्ञान चन्द जी विदिशा से आये थे।
3पपण् पंच कल्याण्क में वडआचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज, उपाध्याय श्री 108चन्द्र सागर जी महाराज, एलेक श्री 108 निर्वाण सागर जी महाराज के सानिध्य में पूजा कराई गई। 
3पपपण् पंचअणुव्रत - अंव्ट आशा राम जी, सहारनपुर ने धारण किये।
3पअण् धार्मिक चर्चा के मुख्य वक्ताः- प0 हुक्म चन्द जी भारिल्ल, जयपुर, प0कानू भाई जी शाह, दाहोद, प0 पूनम चन्द जीछाबड़ा, इन्दौर।
3अण् आकाश से फूलों की वर्षा- देहली गल्फ ऐयरवेज सर्विस प्रा0 लिमिटेड द्वारा हुई थी।
3अपण् हरिद्वार शहर में पहली बार संगीत व भजन संध्याका आयोजन किया गया। जिसमें श्री रवीन्द्र जैन एवं अनुराधा पौडवाल की प्रस्तुति से सारा सभागार करतल ध्वनि करता रहा।
3अपपण् शिखर पर कलश रोहण- श्री सतीश चन्द जैन, ज्वालापुर द्वारा किया गया। 

33. 1989 से 19992 तक - मन्दिर जी का बचा हुआ काम पूरा किया गया। मन्दिर जी की सुरक्षा हेतु चारों ओर ऊंची दीवार का निर्माण कराया गया। 

34. 25.12.2002 से 29.01.2003 - पाण्डुक शिला के सामने की बाउन्ड्री वाल दिनांक 25.12.2002 को नीवं खुदाई से प्रारम्भ होकर दिनांक 29.01.2003 को पूर्ण हुई। जिसका शिलान्यास श्री भागमल जैन पिता श्री संतोष  कुमार जैन, ई.डी., भेल, हरिद्वार एवं श्रीमति ईला जैन श्री विजय कुमार जैन, जी.एम., भेल, हरिद्वार द्वार किया गया जिसका समस्त खर्चा उस समय की प्रबन्ध कमेटी ने किया।

35. अपे्रल 2003 से मई 2003- आचार्य 108 श्री पअंटंठंन्ल्ंछं सन्मति सागर महाराज का आगमन भेल जैन मन्दिर जी में हुआ जिसमें महाराज श्री नेशिखर का पुनः निर्माण कराने के लिए समाज के लोगों को प्रोत्साहित किया, जिसका निर्माण श्री बालेश जैन, श्री जे.सी. हरिद्वार, श्रीपवन कुमार जैन, के-69 शिवालिक नगर एवं अन्य सदस्यों द्वारा दिये गये धन से किया गया। शिखर का ैंनपूातछं दिनांक 23.052003 को श्री अशोक शास्त्री प्राकृताचार्य संघस्थ आचार्य 108 श्री पअंटंठंन्ल्ंछं सन्मति सागर महराज के द्वारा किया गया।

36. 2008- दो कमरों वाला साधु भवन मन्दिर के प्रांगण में श्री बालेश जैन, गोविन्दपुरी, हरिद्वार, श्रीपवन कुमार जैन, के-69 शिवालिक नगर एवं अन्य सदस्यों द्वारा दिये गये दान से बनवाया गया।

37. 2013-2014 (पंच कल्याण्क रजत जयन्ती वर्ष) - गर्भ गृह में दो वेदियां बनवाई गई व एक पर ष्ीश्प्डष् की स्थापना दिनांक 22.09.2013 को की गई। दूसरी पर ष्द्वक्ष् की स्थापना होगी। दोनों वेदियांे का खर्चा श्री संजय जैन, सिडकुल व श्री मनोज कुमार जैन, बहादराबाद ने किया।  ष्ीश्प्डष् मन्दिर की धनराशि से लाया गया एवं ष्द्वक्ष् की धनराशि श्रीमति एवं श्री विजेश जैन, एन-210, शिवालिक नगर ने दी। पंच कल्याण्क रजत जयन्ती वर्ष के अवसर पर पंचपुरी जैन समाज को एक झण्डा पचांगुलक छपा हुआ एवं प्रतीक चिन्ह के रूप में स्वास्तिक का वितरण किया गया। इसके साथ-साथ पाण्डुक शिला एवं हाल के ऊपर अष्टभुजा रोशनदान जिसमें बारिश में पानी आता था का  चनदंतंवूंत किया गया।

 

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