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15-Sep-2019
सूचना आपको सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 क्षमावाणी पर्व दिनांक 15 सितम्बर 2019 दिन रविवार समय प्रातः 9 :30 बजे से आचार्य श्री 108 विशद सागर जी महाराज ससंग के सानिध्य में सामुदायिक केंद्र निकट जैन मंदिर हरिद्वार BHEL में मनाया जा रहा है जिसमे आप सभी सपरिवार समिल्लित होकर कार्यक्रम की सोभा बढ़ाये. कार्यक्रम के पश्चयात भोजन की व्यवस्था सामुदायिक केंद्र में है आयोजक - साधु सेवा समिति ( पंचपुरी ) हरिद्वार
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मंदिर का इतिहास

सन् 1980 में श्री मंदिर जी की नींव रखी गयी थी तथा 9 मई 1985 में वेदी प्रतिष्ठा हुई।

वीर निर्वाण सम्वत् 2506 को धर्मानुरागी श्री मामचन्द जी जैन के परिवार द्वारा जैन मंदिर का निर्माण करया गया। मामचन्द जी के सबसे छोटे सुपुत्र श्री सुशील जैन के सुपुत्र तरूण जैन आयु 11 वर्ष का अगस्त 1998 में अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया अनेकों इलाज कराने के पश्चात् बच्चा इतना अशक्त हो गया कि उठने योग्य भी न रहा और परिवार वालों ने उसके बचने की उम्मीद भी छोड़ दी।

निराशा के इन्हीं क्षणों में अचानक स्वप्न हुआ कि बच्चा दीपावली से एक दिन पहले ठीक हो जाएगा। आश्चर्यजनक रूप से बच्चा दीपावली से एक दिन पूर्व इतना स्वस्थ हो गया कि स्वयं उठकर मंदिर में देव-दर्शन करने गया।

धीरे-धीरे उस बच्चे में आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगे। ऐसा लगा जैसा उसमें कुछ दैविक शक्तियों का उदय होने लगा एक दिन उसने मंदिर में जाकर एक स्थान चिन्हित किया और कहा कि यहां खुदाई करनी है। यहां चमत्कार होंगे। उसमें इतनी शक्ति भी उत्पन्न हो गयी कि स्वयं वह खुदाई भी करने लगा। काफी खुदाई के बाद अशुभ कर्माे के उदय के कारण खुदाई का काम बन्द करना पड़ा जो कि लगभग एक वर्ष तक का रहा।

अचानक एक दिन बच्चे को स्वप्न हुआ कि मंदिर के मुख्य द्वारा से नौ फुट की दूरी पर चैदह फुट नीचे श्री जी विराजमान हैं। खुदाई करने पर ज्येष्ठ अमावस्या शीत् सम्वत् 2528 दिन सोमवार दिनांक 10.06.2002 को श्री चन्द्रप्रभू स्वामी की लगभग 11/2 ऊंची रत्न जडि़त स्वर्णमयी प्रतिमा प्रकट हुई।

इसके छः महीने बीतने पर पुनः स्वप्न हुआ तथा उसके निर्देशानुसार पुनः खुदाई करने पर नवमी दिन बृहस्पतिवार वीर संवत् 2529 दिनांक 26.11.02 को एक प्रतिमा 1008 श्री अरहनाथ भगवान की रत्नजडि़त स्वर्णमयी प्रतिमा प्रकट हुयी। जिससे सर्वत्र आनन्द छा गया। हर्षित परिवार ने विधि विधान के साथ दोनों प्रतिमाओं को वेदी में विराजमान किया तथा पूजा अर्चना प्रारम्भ कर दी। श्री मामचन्द जैन परिवार को भविष्य में कुछ और चमत्कारों की आश है।

’’जय जिनेन्द्र’’
 

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