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15-Sep-2019
सूचना आपको सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 क्षमावाणी पर्व दिनांक 15 सितम्बर 2019 दिन रविवार समय प्रातः 9 :30 बजे से आचार्य श्री 108 विशद सागर जी महाराज ससंग के सानिध्य में सामुदायिक केंद्र निकट जैन मंदिर हरिद्वार BHEL में मनाया जा रहा है जिसमे आप सभी सपरिवार समिल्लित होकर कार्यक्रम की सोभा बढ़ाये. कार्यक्रम के पश्चयात भोजन की व्यवस्था सामुदायिक केंद्र में है आयोजक - साधु सेवा समिति ( पंचपुरी ) हरिद्वार
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मंदिर का इतिहास

विशेष निवेदन।

हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ हरिद्वार के समीप ही एक मील की दूरी यह कनखल भी प्रसिद्ध स्थान है जहां पर कि यात्रियों के अतिरिक्त स्थायी बस्ती भी है जिसमें लगभग सभी जातियां निवास करती है। यहां भारत के कोने-2 से जैन अजैन आते रहते हैं, अभी तक (हरिद्वार और कनखल में) प्रायः सभी की धर्मशालाएँ बनी हुई है परन्तु जैजियों का कोई स्थान नहीं था जिससे कि बाहर से आने वाले भाइयों को इसकी आवश्यकता होती थी और यहां के निवासी जैन भाई भी इसकी आवश्यकता को बहुत समझते थे क्योंकि उन्हें भी अपने धार्मिक कृत्य पूरा करने के लिये यहां कोई मन्दिर न था। इन आवश्यकता का अनुभव करके सन् 1922 में मेरठ निवासी स्वर्गीय ला0 बद्रीदास जी रईस की धर्मपत्नी श्रीमती कम्पादेवी ने (जिनकी यहां पर बहुत जायदाद है) अपनी लागत से जैन मन्दिर निर्माण कराने की प्रतिज्ञा की परन्तु उस समय किन्हीं कारणों से म्युनिसिपैलिटी से आज्ञा प्राप्त न की जा सकी और कार्य स्थगित हो गया।

इसके बाद 6-4-31 को श्रीमान ब्रहृाचारी शीतप्रसाद जी का आगमन हुआ और उनके उपदेश से कनखल निवासी दि0 जैन भाइयों ने यह निश्चय किया कि यहां एक चैत्यालय अवश्य होना चाहिये क्योंकि उसके बिना हम लोगों का धर्म पालन नहीं होता और बाहर से आने वाले भाइयों को भी कष्ट होता है चैत्यालय के निमा्रण के लिये 3000/- रूपया आनुमानिक व्यय लगाया गया तथा निम्नलिखित सज्जनों ने तात्कालिक सहायता दी-
ला0 बूलचन्द बजाज 100/-
ला0 बहाल सिंह बन्नीलाल 100/-
बा0 सुनहर लाल पेश्कार 100/-
ला0 कश्मीरी लाल 100/-
ला0 प्यारे लाल 50/-
ला0 सूरजमल 50/-
ला0 समदंर लाल 2/-

मन्दिर निर्माण का कार्य आरम्भ करने के लिये बा0 सुनहरी लाल जी को मैनेजर और खजांची का पद दिया गया तथा उनको यह भी अधिकार दिया गया कि वे इस रूपये को पोस्ट आफिस में जमा करायें और जब कार्य आरम्भ करने के लायक जमा हो जाय तभी आरम्भ कर दें और रामशरणदास को प्रचारक पद पर नियुक्त करके अधिकार दिया कि वे बाहर से चन्दा प्राप्त कर मैनेजर के पास भिजवा दें। तदनुसार इधर उधर से चन्दा अपीलों से प्राप्त हुआ जो कि 900/- के लगभग था परन्तु इतने कम धन से चैत्यालय का बनना तो दूर रहा जमीन का टुकड़ा भी मिलना कठिन थ और इस लिये यहां के भाइयों ने यह निश्चय किया कि वह रूपया दानदाताओं को मय सूद के वापिस कर दिया जाय या जहां दानदाता कहें वहां दे दिया जाय। तद्नुसार दान दाताओं को सूचना दी गई परन्तु उनकी कोई निश्चित सम्पत्ति नहीं मिली। ऐसी निराशापूर्ण स्थिति में दैवयोग से एक जमीन का टुकउ़ा मिल गया जो कि 800/- रूपये में खरीद लिया गया। परन्तु श्रर्थाभाव से निर्माण कार्य आरम्भ न हो सका उसी समय ज्वालापुर में वेदी प्रतिष्ठा के अवसर पर उपर्युक्त श्रीमान् ब्रह्यचारी जी तथा जैन परिषद् के अनेक पण्डितों की उपथिति में उस खरीदी गई भूमि में जैन धर्मशाला व मन्दिर के लिये अपील की गई जहां पर लगभग 1450/- रूपये का चन्दा लिखा गया तथा बा0 सुनहरी लाल पर कार्यभार अधिक हो जाने के कारण जैनयादव भूषण श्रीमान् ला0 मुरारीलाल जी व बाबूराम जी रईस ज्वालापुर को भी कोषाध्यक्ष का कार्य दिया गया जिससे दोनो सज्जन सुगमता से कार्य कर सकें तथा दानियों को भी सुविधा हो।

उसी समय 161/- प्राप्त हुआ। इसके उपरान्त मन्दिर का निमा्रण कार्य आरम्भ कर दिया गया। श्रीमती मिश्रीबाई के 251/- रूपये के अतिरिक्त सभी दानियों ने अपना 2 वाक्य पूरा कर दिया परन्तु श्रीमजी जी ने बार-2 पंचायत द्वारा याद दिलाने पर भी अपना वाक्य पूरा न किया।

सन् 1937 के भाद्रपद मास में डेपुटेशन द्वारा दो दो भाई देहरादून, सहारनपुर, बिजनौर और मेरठ आदि गये देहरादून और धामपुर को छोड़कर सभी जगहों से डेपुटेशन को सहायता प्राप्त हुई। देहरादून में कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने चतुदशी पर चन्दा एकत्रित करके भेजने का वादा किया था परन्तु फिर भी नहीं भेजा। देहरादून के जो सदस्य ज्वालापुर वेदी प्रतिष्ठा पर आये थे उनका चन्दा अवश्य प्राप्त हुआ जो कि आगे लिखी दानदाताओं की सूची में लिखा है। परन्तु धामपुर में तो डेपुटेशन के साथ बहुत ही असभ्यता का व्यवहार हुआ जबकि डेपूटेशन को चन्दा लेने के लिए फसल के मौके पर दुबारा जाड़ों में बुलाया गया तद्नुसार कनखल से दो भाई चन्दा लेने गये दो दिन ठहरने के बाद साहू चण्डीप्रसाद जी आये और उन्होंने सब भाइयों से लगभग 40/- रूपया चन्दा इकठ्ठा कराया परन्तु ज्योंही उस चन्दे की रसीद दी जाने लगी उन्होंने रसीद बहीे में कुछ गलती निकाल कर डेपूटेशन के सदस्यों को बुरा भला कहा और एकत्रित चन्दा नहीं दिया और न ही यहां हमारे पास भेजा, पता नहीं उस चन्दे का क्या हुआ। साहू साहब से हमारा निवेदन है कि यदि उनको कोई आशंका है तो दूर कर लें और उस समय भी उनको ऐसा ही चाहिये था पर इस प्रकार भाइयों का अपमान नहीं करना चाहिये था। पीछे हमें मालूम हुआ कि उन्होंने ज्वालापुर निवासी ला0 मुरारीलाल जी से पत्र भेज कर कुछ मालूम भी किया परन्तु एकत्रित चन्दा हमारे पास फिर भी नहंी आया।

इस समय धर्मशाला का प्रवेशद्वार छोड़कर बाकी नीचे का भाग लगभग तैयार हो चुका है उसमें ऊपर का एक कमरा श्रीमान बा0 उलफलराय जी इन्जीनियर सहारनपुर (वर्तमान मेरठ) ने स्वर्गीया धर्मपत्नी श्रीमती पुतलीबाई की यादगार में बनवाया तथा इसी कमरे में वेदी की स्थापना श्रीमती गोमती कुंवर रईस सहारनपुर की ओर से होगी, तथा ऊपर का दूसरा कमरा कनखल निवासी श्रीमती गुंलकन्दी बाई धर्मपत्नी स्वर्गीय ला0 हरद्वारीलाल ने बनवाया है। धर्मशाला में नीचे एक कमरा ला0 अम्बाप्रसाद जी रईस व आनरेरी मजिस्ट्रेट मेरठ सदर निवासी ने बनवाया।

अभी तक प्लास्टर तथा किवाडों की जोड़ी, सदर दरवाजा और छज्जे पर होकर मन्दिर का रास्ता तथा जीना अत्यन्त आवश्यक कार्य बाकी है जिसके बिना सभी अधूरा है इस काम को पूरा करने के लिये 3000 रूपयों की आवश्यकत है। अतः सब सज्जनों से प्रार्थना है कि इस पवित्र कार्य को पूरा कराकर धर्म के भागी बनें और जो कोई पूरा कमरा बनाना चाहें आप आकर या रूपया भेजर बनवा सकते हैं जिस पर उनके नाम का पत्थर लगा दिया जायेगा। आय व्यय का समस्त विवरण आगे दिया जाता है इस सब को पूरा करते हुए हम अभारी जिन्होंने की डेपूटेशन को अपना अमूल्य समय देकर सफल बनाया तथा ज्वालापुर निवासी श्रीमान ला0 मुरारीलाल बाबूराम जी के अत्यन्त आभारी है और आश करते हे कि आगे भी ऐसी ही सहायता करते रहेगे। कनखल निवासी श्रीमान् ला0 जेठमल, ला0 छोटनलाल, ला0 बंशीलाल जी इस कार्य में बड़े उत्साह से लगे हुए हैं उनको भी हृदय से धन्यवाद देते हैं और विशेष करके बाबू सुनहरीलाल जी पेश्कार का हम हृदय से धन्यवाद करते हैं जिनके उद्योग से यह सारा आयोजन हुआ और मन्दिर निर्माण की आज्ञा मिलकर निर्माण कार्य आरम्भ हो गया तथा इस अवस्था तक पहुॅच गया।

निवेदक-
सकल जैन पंचान, कनखल।
 

 

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